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ममता बनर्जी इस राज्य में लगातार तीसरी बार विजयश्री दर्ज कर रही हैं।
– फोटो : अमर उजाला
राजनीति में आत्मविश्वास यानी कॉन्फिडेंस बहुत ज़रूरी होता। अपना विस्तार करने और चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल के पास आत्मविश्वास होना ही चाहिए। लेकिन जब आत्मविश्वास बढ़कर अति आत्मविश्वास यानी ओवर कॉन्फिडेंस में तब्दील हो जाए तो किसी भी दल या व्यक्ति के लिए यह बड़ी ख़तरनाक अवस्था होती है। अगर भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो पार्टी इन दिनों अति आत्मविश्वास की शिकार हो गई है।
इस ओवर कॉन्फिडेंस के कारण ही पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा की लुटिया डूबी है। हालांकि 2016 के विधानसभा चुनाव में केवल तीन सीट जीतने वाली भाजपा के लिए 80-90 सीट जीतना बहुत बड़ी सफलती कही जाएगी, लेकिन जो दल सरकार राज्य में दो तिहाई बहुत के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही हो, उसके लिए इस नतीजे को करारी हार ही कहा जाएगा।
ममता की क्षमता और बीजेेेेपी की चूक
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तीसरी बार मिले भारी जनादेश से यही लगता है पश्चिम बंगाल की जनता को भाजपा नेताओं का चुनाव प्रचार के दौरान अति आक्रमकता हो जाना बिल्कुल रास नहीं आया। ख़ासकर चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कमोबेश हर भाजपा नेता का ममता बनर्जी के लिए दीदी-दीदी या ‘दीदी ओ दीदी’ जैसा संबोधन को बंगाल की जनता ने शीर्ष पद पर बैठी हुई एक महिला के लिए सम्मानजनक संबोधन नहीं माना।
दरअसल, भले भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है, लेकिन इस समाज में महिलाओं की बहुत इज़्ज़त की जाती है। ख़ासकर बहन शब्द तो बहुत सम्मानित संवेदनशील होता है, लेकिन के हर नेताओं ने चुनाव में ममता के लिए दीदी-दीदी या ‘दीदी ओ दीदी’ का संबोधन बिल्कुल ही गरिमापूर्ण और सम्मानजनक नहीं लग रहा था। इसका सीधा असर विधानसभा के नतीजों पर देखने को मिल रहा है।
2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गया था और मनमाने तरीक़े से फैसले लेने लगा था। जब देश कोरोना संक्रमण से पस्त है। दो लाख लोग को इस वायरस की भेंट चढ़ चुके हैं। करोड़ों लोगों ने अपनी आमदनी का स्रोत गंवा दिया है। बहुत बड़ी तादाद में आबादी भुखमरी के कग़ार पर है। ऐसे संकट के समय भाजपा सरकार रोजाना पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ा रही थी। यह वृद्धि जब लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने की बजाय उनके ज़ख़्मों के कुरेद रही थी।
कल्पना करिए जब लोगों के पास काने के लिए भोजन नहीं था, उसी समय कभी 50 पैसे तो कभी 80 पैसे बढ़ाती हुई सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में 20 से 25 रुपए की बढ़ोतरी कर दी। पेट्रोल और डीजल के दाम में वृद्धि का कमोबेश हर ज़रूरी वस्तु की कीमत को प्रभावित करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार ने इसकी बिल्कुल परवाह नहीं की। यही वजह है कि जब लोगों को अवसर मिला तो अपने वोट की ताकत की बदैलत उन्होंने भाजपा को बता दिया कि पेट्रोल डीजल क दाम बढ़ाकर सरकार ने ठीक नहीं किया।
भाजपा की हार की वजहें
भाजपा को हतोत्साहित करने वाली सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि उसे उतनी भी सीटों पर भी विजयश्री नहीं मिल सकी जितनी विधानससभा सीटों पर उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़त मिली थी। कहना न होगा कि इस चुनाव को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। चुनाव जीतने के लिए दुनिया की इस सबसे बड़ी पार्टी ने कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ी, लेकिन उसके नेताओं के अति आत्मविश्वास ने पार्टी का बड़ा नुकसान किया।
बेशक राष्ट्रवाद में भरोसा भाजपा एक देशभक्त राजनीतिक दल है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले 370 और 35 ए जैसे अनुच्छेदों को हटाकर भाजपा ने साबित कर दिया था कि वह राष्ट्र के व्यपाक हित में चिंतन करने वाली पार्टी है। लेकिन देशभक्त तो हर राजनीतिक दल है। राजनीतिक दल को चुनाव जीतने के लिए जनोन्मुख भी होना चाहिए। जनता के दुख-दर्द का शिद्दत से महसूस करना चाहिए। राजनीतिक दल को जनता का हितैषी ही नहीं होना चाहिए बल्कि बिना विज्ञापन के दिखना चाहिए कि सरकार जनता की हितैषी है। इस फ्रंट पर भाजपा और उसकी केंद्र सरकार चूक गई।
पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मुद्दे ने भी अहम किरदार निभाया। भारत ने कोरोना संक्रमण पर अपनी विजय का ऐलान बहुत जल्दी कर दिया, जैसा कि अमेरिका के शीर्ष महामारी विशेषज्ञ एंथनी फाउची मानते हैं। भारत में कोरोना वायरस के बहुत तेजी से बढ़ते संक्रमण पर रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना फाउची ने कहा कि भारत ने कोरोना के संक्रमण की गंभीरता को समझे बिना इस वैश्कि वायरस को हराने का एलान कर दिया।
कोरोना वायरस को भूलेे
एक गंभीर सवाल यह भी है कि भारत ने कोरोना वायरस की पहली लहर से कोई सबक नहीं लिया। सरकार और सरकार में बैठे लोग लोगों को ग़ुमराह करते रहे। यही वजह है कि अब कोरोना वायरस साक्षात् यमराज बन गया है। देश में हर जगह ऑक्सीजन की जो भारी कमी देखने को मिल रही है, उसके लिए एक बड़ा तबका केंद्र सरकार को जिम्मेदार मान रहा है।
भाजपा से सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक पंडित इस साल के आरंभ में मानने लगे थे कि पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में बारी जीत दर्ज करके भाजपा वहां सत्ता में आ सकती है। भाजपा इसके लिए एड़ी-चोटी का जोर भी लगा रही थी। पिछले साल के अंत में और इस साल के शुरुआत में जब एक एक करके त्रिणमूल कांग्रेस के ढेर सारे भाजपा का दामन तामने लगे थे, तो बंगाल के बाहर रहने वालों को भी एक बार लगा कि मुमकिन है भाजपा पश्चिम बंगाल में ममता को भी सत्ता से बेदखल कर दे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ममता बनर्जी इस राज्य में लगातार तीसरी बार विजयश्री दर्ज कर रही हैं और शुरुआती रुझान में उनके दल को दो सौ से अधिक सीट मिलती दिख रही है। दूसरी ओर बंगाल में दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाने कारसपना देखने वाली भारतीय जनता पार्टी की सीट तीन अंकों में नहीं पहुंचती दिख रही है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
राजनीति में आत्मविश्वास यानी कॉन्फिडेंस बहुत ज़रूरी होता। अपना विस्तार करने और चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल के पास आत्मविश्वास होना ही चाहिए। लेकिन जब आत्मविश्वास बढ़कर अति आत्मविश्वास यानी ओवर कॉन्फिडेंस में तब्दील हो जाए तो किसी भी दल या व्यक्ति के लिए यह बड़ी ख़तरनाक अवस्था होती है। अगर भारतीय जनता पार्टी की बात करें तो पार्टी इन दिनों अति आत्मविश्वास की शिकार हो गई है।
इस ओवर कॉन्फिडेंस के कारण ही पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा की लुटिया डूबी है। हालांकि 2016 के विधानसभा चुनाव में केवल तीन सीट जीतने वाली भाजपा के लिए 80-90 सीट जीतना बहुत बड़ी सफलती कही जाएगी, लेकिन जो दल सरकार राज्य में दो तिहाई बहुत के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही हो, उसके लिए इस नतीजे को करारी हार ही कहा जाएगा।
ममता की क्षमता और बीजेेेेपी की चूक
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तीसरी बार मिले भारी जनादेश से यही लगता है पश्चिम बंगाल की जनता को भाजपा नेताओं का चुनाव प्रचार के दौरान अति आक्रमकता हो जाना बिल्कुल रास नहीं आया। ख़ासकर चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कमोबेश हर भाजपा नेता का ममता बनर्जी के लिए दीदी-दीदी या ‘दीदी ओ दीदी’ जैसा संबोधन को बंगाल की जनता ने शीर्ष पद पर बैठी हुई एक महिला के लिए सम्मानजनक संबोधन नहीं माना।
दरअसल, भले भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है, लेकिन इस समाज में महिलाओं की बहुत इज़्ज़त की जाती है। ख़ासकर बहन शब्द तो बहुत सम्मानित संवेदनशील होता है, लेकिन के हर नेताओं ने चुनाव में ममता के लिए दीदी-दीदी या ‘दीदी ओ दीदी’ का संबोधन बिल्कुल ही गरिमापूर्ण और सम्मानजनक नहीं लग रहा था। इसका सीधा असर विधानसभा के नतीजों पर देखने को मिल रहा है।
2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अतिआत्मविश्वास का शिकार हो गया था और मनमाने तरीक़े से फैसले लेने लगा था। जब देश कोरोना संक्रमण से पस्त है। दो लाख लोग को इस वायरस की भेंट चढ़ चुके हैं। करोड़ों लोगों ने अपनी आमदनी का स्रोत गंवा दिया है। बहुत बड़ी तादाद में आबादी भुखमरी के कग़ार पर है। ऐसे संकट के समय भाजपा सरकार रोजाना पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ा रही थी। यह वृद्धि जब लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने की बजाय उनके ज़ख़्मों के कुरेद रही थी।
कल्पना करिए जब लोगों के पास काने के लिए भोजन नहीं था, उसी समय कभी 50 पैसे तो कभी 80 पैसे बढ़ाती हुई सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में 20 से 25 रुपए की बढ़ोतरी कर दी। पेट्रोल और डीजल के दाम में वृद्धि का कमोबेश हर ज़रूरी वस्तु की कीमत को प्रभावित करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार ने इसकी बिल्कुल परवाह नहीं की। यही वजह है कि जब लोगों को अवसर मिला तो अपने वोट की ताकत की बदैलत उन्होंने भाजपा को बता दिया कि पेट्रोल डीजल क दाम बढ़ाकर सरकार ने ठीक नहीं किया।

जीत का निशान दिखातीं ममता बनर्जी
– फोटो : ANI
भाजपा की हार की वजहें
भाजपा को हतोत्साहित करने वाली सबसे बड़ा फैक्टर यह है कि उसे उतनी भी सीटों पर भी विजयश्री नहीं मिल सकी जितनी विधानससभा सीटों पर उसे 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़त मिली थी। कहना न होगा कि इस चुनाव को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। चुनाव जीतने के लिए दुनिया की इस सबसे बड़ी पार्टी ने कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं छोड़ी, लेकिन उसके नेताओं के अति आत्मविश्वास ने पार्टी का बड़ा नुकसान किया।
बेशक राष्ट्रवाद में भरोसा भाजपा एक देशभक्त राजनीतिक दल है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले 370 और 35 ए जैसे अनुच्छेदों को हटाकर भाजपा ने साबित कर दिया था कि वह राष्ट्र के व्यपाक हित में चिंतन करने वाली पार्टी है। लेकिन देशभक्त तो हर राजनीतिक दल है। राजनीतिक दल को चुनाव जीतने के लिए जनोन्मुख भी होना चाहिए। जनता के दुख-दर्द का शिद्दत से महसूस करना चाहिए। राजनीतिक दल को जनता का हितैषी ही नहीं होना चाहिए बल्कि बिना विज्ञापन के दिखना चाहिए कि सरकार जनता की हितैषी है। इस फ्रंट पर भाजपा और उसकी केंद्र सरकार चूक गई।
पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मुद्दे ने भी अहम किरदार निभाया। भारत ने कोरोना संक्रमण पर अपनी विजय का ऐलान बहुत जल्दी कर दिया, जैसा कि अमेरिका के शीर्ष महामारी विशेषज्ञ एंथनी फाउची मानते हैं। भारत में कोरोना वायरस के बहुत तेजी से बढ़ते संक्रमण पर रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना फाउची ने कहा कि भारत ने कोरोना के संक्रमण की गंभीरता को समझे बिना इस वैश्कि वायरस को हराने का एलान कर दिया।
कोरोना वायरस को भूलेे
एक गंभीर सवाल यह भी है कि भारत ने कोरोना वायरस की पहली लहर से कोई सबक नहीं लिया। सरकार और सरकार में बैठे लोग लोगों को ग़ुमराह करते रहे। यही वजह है कि अब कोरोना वायरस साक्षात् यमराज बन गया है। देश में हर जगह ऑक्सीजन की जो भारी कमी देखने को मिल रही है, उसके लिए एक बड़ा तबका केंद्र सरकार को जिम्मेदार मान रहा है।
भाजपा से सहानुभूति रखने वाले राजनीतिक पंडित इस साल के आरंभ में मानने लगे थे कि पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में बारी जीत दर्ज करके भाजपा वहां सत्ता में आ सकती है। भाजपा इसके लिए एड़ी-चोटी का जोर भी लगा रही थी। पिछले साल के अंत में और इस साल के शुरुआत में जब एक एक करके त्रिणमूल कांग्रेस के ढेर सारे भाजपा का दामन तामने लगे थे, तो बंगाल के बाहर रहने वालों को भी एक बार लगा कि मुमकिन है भाजपा पश्चिम बंगाल में ममता को भी सत्ता से बेदखल कर दे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ममता बनर्जी इस राज्य में लगातार तीसरी बार विजयश्री दर्ज कर रही हैं और शुरुआती रुझान में उनके दल को दो सौ से अधिक सीट मिलती दिख रही है। दूसरी ओर बंगाल में दो तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाने कारसपना देखने वाली भारतीय जनता पार्टी की सीट तीन अंकों में नहीं पहुंचती दिख रही है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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