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सार
सेक्टर-94 स्थित अंतिम निवास में लोग चिता में अग्नि देते ही चले जाते हैं। इसके बाद अंतिम निवास का संचालन कर रही संस्था के सदस्य ही अपनों से अधिक धर्म निभाते हुए अंतिम संस्कार की पूरी क्रिया सम्पन्न करा रहे हैं।
शवों को लेकर पहुंची एंबुलेंस
– फोटो : अमर उजाला
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इसके बाद अंतिम निवास का संचालन कर रही संस्था के सदस्य ही अपनों से अधिक धर्म निभाते हुए अंतिम संस्कार की पूरी क्रिया सम्पन्न करा रहे हैं। शहर में कोरोना संक्रमण निरंतर बड़ी संख्या लोगों को चपेट में ले रहा है। इस कारण मृत्यु बढ़ने पर लोग भयभीत हो गए हैं।
ऐसे में कोरोना के कारण परिजन की मौत होने पर अंतिम संस्क की जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभा पा रहे हैं। आमतौर पर मृतक के परिजन अस्थियां लेकर ही श्मशान घाट से घर जाते हैं, लेकिन इस समय कोरोना के खौफ से मृतकों के परिजन ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
अंतिम निवास में गत 15 दिन से रोजाना 50 से 70 शवों का अंतिम संस्कार किया रहा है। इस दौरान अधिकतर मृतकों के परिजन चिता को अग्नि देने के तत्काल बाद घर चले जाते हैं । उनके जाने पर संस्था के सदस्य ही पूरी क्रिया संपन्न कर रहे हैं। कई बार शव को पूरी तरहा जलाने में लकड़ी भी कम पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में संस्था के सदस्य ही लकड़ी की व्यवस्था करते हैं। इनका कहना है कि परिजन अपनी लाचारी बताते हुए उन्हें चिता संभालने के लिए बोलकर चले जाते हैं।
कई मृतकों के परिजन फोन के माध्यम से बाद में जानकारी लेते हैं। इसके अलावा लकड़ी कम पड़ने के बारे में पूछते हैं। जब अस्थियां लेते आते हैं तब दोबारा लकड़ी डालने के रुपये देते हैं। मगर हम पैसे नहीं लेते।
40 शवों का अंतिम संस्कर
सेक्टर-94 स्थित अंतिम निवास में रविवार को 40 संक्रमितों का अंतिम संस्कार किया गया। सीएनजी चलित दोनों भट्ठी में भी शवों का दाह संस्कार किया गया। वहीं, बरौला स्थित स्मशान घाट में 12 शवों का अंतिम संस्कार किया गया।
शनि मंदिर के पास श्मशान घाट में 6, होशियारपुर स्थित श्मशान घाट में 5 और सेक्टर-135 स्थित श्मशान घाट में 2 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इन चारों श्मशान घाटों में अन्य बीमारियों व विभिन्न कारणों से मरने वालों का अंतिम संस्कार किया जाता है।
विस्तार
कोरोना ने लोगों को बुरी तरह झकझोर दिया है। हालात ये हैं कि संक्रमण के खौफ में अपने परिजन की मृत्यु होने पर उसके संस्कार की औपचारिकता बड़ी मुश्किल से निभा पा रहे हैं। सेक्टर-94 स्थित अंतिम निवास में लोग चिता में अग्नि देते ही चले जाते हैं।
इसके बाद अंतिम निवास का संचालन कर रही संस्था के सदस्य ही अपनों से अधिक धर्म निभाते हुए अंतिम संस्कार की पूरी क्रिया सम्पन्न करा रहे हैं। शहर में कोरोना संक्रमण निरंतर बड़ी संख्या लोगों को चपेट में ले रहा है। इस कारण मृत्यु बढ़ने पर लोग भयभीत हो गए हैं।
ऐसे में कोरोना के कारण परिजन की मौत होने पर अंतिम संस्क की जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभा पा रहे हैं। आमतौर पर मृतक के परिजन अस्थियां लेकर ही श्मशान घाट से घर जाते हैं, लेकिन इस समय कोरोना के खौफ से मृतकों के परिजन ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
अंतिम निवास में गत 15 दिन से रोजाना 50 से 70 शवों का अंतिम संस्कार किया रहा है। इस दौरान अधिकतर मृतकों के परिजन चिता को अग्नि देने के तत्काल बाद घर चले जाते हैं । उनके जाने पर संस्था के सदस्य ही पूरी क्रिया संपन्न कर रहे हैं। कई बार शव को पूरी तरहा जलाने में लकड़ी भी कम पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में संस्था के सदस्य ही लकड़ी की व्यवस्था करते हैं। इनका कहना है कि परिजन अपनी लाचारी बताते हुए उन्हें चिता संभालने के लिए बोलकर चले जाते हैं।