Bengal Election: Will Modi Vs Mamta Be Played At National Level Too? Will Trinamool And Other Opposition Parties Be United? – सियासत: क्या राष्ट्रीय स्तर पर भी होगा मोदी बनाम ममता का ‘खेला’, बंगाल के नतीजों का 2024 पर कितना असर?

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Sun, 02 May 2021 01:32 PM IST

सार

बंगाल चुनाव के बाद देश के सियासी समीकरण बदल सकते हैं। तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रॉयन व महुआ मोइत्रा ने बीते दिनों कहा था कि अब तृणमूल बनारस में मैदान में उतरेगी। यह साफ संकेत है कि दीदी बनाम मोदी की सियासी जंग आने वाले दिनों में तेज होगी। 
 

20204 में होगी मोदी बनाम ममता की सियासी जंग?

20204 में होगी मोदी बनाम ममता की सियासी जंग?
– फोटो : amar ujala graphic

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विस्तार

देश के चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव हुए, लेकिन हर किसी की नजर बंगाल पर टिकी रही। दरअसल, यहां सीधा मुकाबला टीएमसी-भाजपा के बीच था या यूं कह लीजिए कि टक्कर मोदी बनाम ममता हो गई थी। अब तक के रुझानों से दीदी की हैट्रिक तय है। पीएम मोदी और भाजपा के तमाम दांव-पेचों के बावजूद टीएमसी 2016 जितनी विधानसभा सीटों पर आगे चल रही है। टीएमसी की इस जीत ने एक बड़ा सवाल भी उठा दिया है। वह यह कि क्या अब राष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी बनाम ममता के बीच ‘खेला’ होगा?  क्या बंगाल चुनाव के नतीजों को 2024 के आम चुनावों पर असर होगा?

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने बंगाल चुनाव 2021 में बढ़त बनाकर करिश्मा किया है। कांग्रेस व माकपा की बात छोड़िए भाजपा को भी अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल सकी, हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद उसने विधानसभा चुनाव में भी कामयाबी पाई है, भले सत्ता से वंचित रहे। 

कैसा है मौजूदा राष्ट्रीय परिदृश्य

दरअसल, राष्ट्रीय स्तर पर अभी पीएम नरेंद्र मोदी को सीधे चुनौती दे सके, ऐसे नेता का अभाव है। कांग्रेस अपने आंतरिक मतभेदों में उलझी है तो अन्य विपक्षी दल भी अपने-अपने राज्यों में सिमटे हुए हैं। ऐसे में सर्वमान्य विपक्षी नेता को लेकर बड़ी खाई है। चाहे शरद पवार की बात करें या चंद्र बाबू नायडू, अखिलेश यादव, मायावती, उद्धव ठाकरे या अन्य किसी क्षेत्रीय नेता की, पीएम मोदी की तुलना में उनकी सामर्थ्य कम है। चाहे बंगाल में भाजपा को कामयाबी नहीं मिले, लेकिन नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर खास फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा। 

ममता व राहुल में कौन भारी?

ऐसे सियासी हालात में जब राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के एकछत्र नेता की कमी है तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी व टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी में संभावनाएं नजर आती हैं। अब सवाल यह है कि जमीनी लड़ाई लड़कर जीत हासिल करने की ताकत किस नेता की ज्यादा है तो वह निसंदेह राहुल की तुलना में दीदी की ज्यादा है। हालिया बंगाल चुनाव में दीदी ने जिस तरह अकेले किला लड़ाया और हैट्रिक बनाने का रास्ता साफ किया, वह उनका कद बढ़ाने वाला है। वहीं राहुल गांधी ने भी केरल व तमिलनाडु पर फोकस किया। केरल में उन्हें कामयाबी नहीं मिली, लेकिन तमिलनाडु में वह डीएमके के साथ कामयाबी पा रहे हैं। 

बंगाल छोड़ सकेंगी दीदी?

दरअसल बंगाल चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने आक्रामक प्रचार व रणनीति अपनाते हुए पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बाद भी तृणमूल कांग्रेस का लगातार तीसरी बार जीत हासिल करना साबित करता है कि उसकी बंगाल में जड़ें उसी तरह जम चुकी हैं, जिस तरह कभी वाम मोर्चे की जमी हुई थी। ऐसे में अब यह देखना होगा कि क्या दीदी बंगाल की कमान अपने पास रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर ताल ठोकेंगी या बंगाल की गद्दी किसी ओर का सौंप कर राष्ट्रीय राजनीति में ताल ठोकेंगी? यह देखना होगा।  

पीएम ने कहा था-दूसरी सीट तलाश रहीं दीदी, जवाब में टीएमसी ने कहा था-बनारस में तैयार रहें

दरअसल, बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली में पीएम मोदी ने कहा था कि नंदीग्राम में अपनी हार को देखते हुए ममता बनर्जी दूसरी सीट से चुनाव लड़ने वाली हैं। इस दावे पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने तंज कसा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया, ‘पीएम मोदी कहते हैं कि ममता बनर्जी दूसरी सीट से लड़ेंगी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी आप सही कह रहे हैं और वह सीट होगी वाराणसी, तो लड़ाई के लिए आप तैयार हो जाइए।’

एकजुट विपक्ष से हो सकता है राष्ट्रीय स्तर पर खेला

बंगाल चुनाव में ‘खेला होबे’ का नारा खूब उछला, इसे ममता बनर्जी ने उछाला और पीएम नरेंद्र मोदी व अन्य भाजपा नेताओं ने भी खूब खेला। लेकिन बंगाल गौरव के आगे सोनार बांग्ला का नारा कमजोर साबित हुआ और बंगाल की शेरनी ने खेला कर दिखाया। 

दीदी को सर्वमान्य नेता मानेगा विपक्ष?

अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना, अकाली दल, सपा, बसपा, डीएमके जैसे विपक्षी दल एकजुट होकर दीदी को अपना नेता कबूल करेंगे? क्या कोई इन सब दलों को जोड़कर अगले दो-तीन सालों में एनडीए का विकल्प तैयार कर सकेगा? बिखरे विपक्ष को एकजुट करने के लिए क्या कांग्रेस अपनी महत्वाकांक्षाओं को सीमित करेगी? यदि ऐसा हो सका तो दीदी राष्ट्रीय स्तर पर खेला करने में सक्षम हो सकती हैं। बहरहाल आगे-आगे देखिए होता है क्या? 


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