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भोपाल3 घंटे पहले
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विदेशी मीडिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। दुनिया के टॉप मीडिया हाउस ने प्रधानमंत्री मोदी को देश के भयावह हालात का जिम्मेदार ठहराया। ऑस्ट्रेलिया के जाने-माने मीडिया हाउस ‘द ऑस्ट्रेलियन’ ने भी ऐसा ही आर्टिकल कुछ दिनों पहले छापा। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में कैनबरा स्थित इंडियन हाई कमीशन हरकत में आया। उसने अखबार के एडिटर-इन-चीफ के नाम चिट्ठी लिखी। कमीशन ने आर्टिकल को तुरंत हटाने और मीडिया हाउस से माफीनामा पब्लिश करने की मांग की।
हम उस चिट्ठी के कुछ हिस्सों में कही गई बातों और उसके सामने देश के असली हालात की तुलना करने की कोशिश कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि चिट्ठी में क्या लिखा गया और असलियत क्या है।

चिट्ठी में कहा गया- तथ्यों से दूर है आर्टिकल
इस चिट्ठी में लिखा गया है कि द ऑस्ट्रेलियन की तरफ से आया आर्टिकल तथ्यों से दूर है। इसमें भारत सरकार के किसी अधिकारी से बातचीत तक नहीं की गई है। ये आर्टिकल भारतीय सरकार को बदनाम करने के मकसद से लिखा गया है। इसमें कोरोना को लेकर भारत की तरफ से उठाए जा रहे कदमों की अनदेखी की गई है।
असलियत: पिछले दस दिन से 3 लाख से ज्यादा केस मिल रहे हैं। शुक्रवार को नए मरीजों की संख्या 4 लाख के पार चली गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक शुक्रवार को कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या 3500 के पार रही। एक्टिव केस के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है।
चिट्ठी में कहा गया- कोरोना के लिए हर संभव कदम उठे
शुरुआत में लॉकडाउन से लेकर अब वैक्सीनेशन अभियान तक, भारतीय सरकार ने कोरोना के खिलाफ हर संभव कदम उठाए हैं। कोरोना टेस्ट की रफ्तार बढ़ाने के साथ ट्रीटमेंट को मजबूत करके लाखों जिंदगी को बचाया गया है।
असलियत: टेस्टिंग की बात करें तो 30 अप्रैल को 19.5 लाख टेस्ट हुए। अभी तक करीब 29 करोड़ लोगों की टेस्टिंग हुई है। यानी भारत की कुल आबादी का 20% लोगों का ही टेस्ट हुआ है। ऑक्सीजन की किल्लत और अस्पतालों में बेड के लिए जंग जैसा माहौल पूरे देश को पता है। हालात ये हैं कि स्वास्थ्य मंत्रालय को नई गाइडलाइंस में होम आइसोलेशन और घरेलू नुस्खों को शामिल करना पड़ा।
चिट्ठी में लिखा गया- वैक्सीनेशन पर तेज काम
सरकार के ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल से 80 देशों तक 6.6 करोड़ वैक्सीन पहुंचाई गई। 150 देशों को दूसरी दवाइयां और PPE किट पहुंचाई गई।
असलियत: सरकार ने 1 मई से 18+ वैक्सीनेशन का ऐलान तो कर दिया, लेकिन ये होगा कैसे इसका कोई अता-पता नहीं। नतीजा ये कि दिल्ली, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, गोवा, छत्तीसगढ़ ने 18+ वैक्सीन से मना कर दिया या इसे करने में परेशानी बताई। इन सभी राज्यों में वैक्सीन की किल्लत है। फिलहाल वैक्सीन देश के 10% आबादी तक ही पहुंच पाई है। अगस्त तक 30 करोड़ लोगों के वैक्सीनेशन का लक्ष्य है। वहीं, कच्चे माल की नामौजूदगी में कंपनियां हर महीने 8 करोड़ डोज के प्रोडक्शन में भी जद्दोजहद कर रही हैं।
चिट्ठी में लिखा गया- सरकार युद्धस्तर पर जुटी
तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने युद्धस्तर पर कदम उठाए। हमें भरोसा है कि संक्रमण को जल्द रोका जा सकेगा। हरेक नागरिक की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता है। हमारे डॉक्टर और साइंटिस्ट ये खोजने की कोशिश कर रहे हैं कि संक्रमण इतनी तेजी से क्यों फैल रहा है। ये भी पता करने की कोशिश हो रही है कि भारत से बाहर से आया स्ट्रेन का संक्रमण बढ़ाने में क्या रोल है, लेकिन आर्टिकल में सीधे तौर पर ये आरोप लगाया गया है प्रधानमंत्री मोदी के चुनावी प्रचार और एक धार्मिक आयोजन से कोरोना फैला।
असलियत: ये जानने के लिए बस नीचे दी गई खबरों की हेडलाइंस पढ़ लीजिए…
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चिट्ठी की आखिरी लाइनें
इस तरह की रिपोर्ट से ना सिर्फ झूठ फैल रहा है बल्कि ऐसी महामारी के खिलाफ लड़ाई भी कमजोर पड़ रही है। ऐसा आपके पब्लिकेशन की प्रतिष्ठा के लिए अच्छी बात नहीं है। इसके लिए माफीनामा छापें और भविष्य में इस तरह के आर्टिकल छापने से बचें।
दूसरी विदेशी मीडिया ने ये लिखा

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