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ऐ ज़िन्दगी कुछ तो बता
क्या दे रही ज़िन्दगी का सिला
क्यों कर रही अपनों को अपनों से दूर
होता है दर्द क्या, क्या तुझे है पता
छूटती सांसें हैं और टूटते अपने हैं
छूटते हैं अपनों के निशां
ऐ ज़िन्दगी कुछ तो बता
क्या दे रही ज़िन्दगी का सिला
देखती थी जो आंखें सपने
बह रही है को समन्दर बनकर
हो गया है मन आधिर्ज ये
छूटते अपनों का साथ देखकर
ऐ ज़िन्दगी कुछ तो बता
क्या दे रही ज़िन्दगी का सिला
क्यों कर रही अपनों को अपनों से दूर
होता है दर्द क्या, क्या तूझे है पता।
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